विद्या धनम् सर्वधनम् प्रधानम् पर संस्कृत निबंध
विद्या (विद्या धनम् सर्वधनम् प्रधानम्)
(१) विद्यते सदसद्ज्ञानम् अनया सा विद्या कथ्यते । (२) विद्या विनयं ददाति । (३) विनयात् पात्रता प्राप्यते । (४) पात्रत्वात् धनं प्राप्यते, धनात् धर्मः ततः च सुखं प्राप्यते । (५) विद्या व्यये कृते वर्धते । (६) विद्यां चौरः न चौरयति । (७) विद्यां राजा न हरति । (८) विद्यां भ्राता न विभाज्यते । (६) विद्याः बुद्धेः मूर्खताम् हरति । (१०) अतः विद्या धनं सर्वश्रेष्ठं कथ्यते ।
हिन्दी अनुवाद
विद्या (विद्या धन सभी धनों में प्रमुख है)
(१) जिससे सत्य और असत्य का ज्ञान होता है, उसे विद्या कहते हैं। (२) विद्या विनय (नम्रता) प्रदान करती है। (३) विनय से पात्रता प्राप्त होती है। (४) पात्रता से धन प्राप्त होता है, और धन से धर्म तथा धर्म से सुख प्राप्त होता है। (५) विद्या खर्च करने पर भी बढ़ती है। (६) विद्या को चोर नहीं चुरा सकता। (७) राजा भी विद्या को नहीं छीन सकता। (८) विद्या को भाई भी बाँट नहीं सकता। (९) विद्या बुद्धिहीनता को दूर करती है। (१०) इसलिए विद्या को सभी धनों में सर्वश्रेष्ठ धन कहा गया है।